Maa Kalaratri's Valor: A Night of Bloodshed and Triumph


Maa Kalaratri, the seventh form of Goddess Durga, is revered during the festival of Navratri. Her name "Kalaratri" means "the one who is the night of time," symbolizing her fierce and destructive nature.

Long ago, a formidable demon named Raktabeej terrorized the world. He possessed a unique power – every drop of his blood that fell on the ground gave birth to a new demon, making him almost invincible. The gods and goddesses were in despair, unable to defeat him.

Desperate, they turned to the divine mother, Durga, seeking her assistance. Maa Durga, in response to their prayers, transformed into Maa Kalaratri. She emerged as a fierce and dark goddess with wild disheveled hair, a garland of skulls, and a flaming third eye.

Riding a ferocious donkey, Maa Kalaratri wielded a powerful sword in one hand and a burning iron hook in the other. She charged into battle, unafraid of the darkness and chaos. When Raktabeej confronted her, she attacked him mercilessly. With her sword, she severed his limbs, and with her iron hook, she prevented his blood from falling to the ground. She drank his blood, preventing the birth of new demons.

In a fierce battle that raged through the night, Maa Kalaratri annihilated Raktabeej and his army, finally bringing an end to the menace that had plagued the world. Her victory was a triumph of good over evil, and she emerged as a symbol of courage and strength.

Maa Kalaratri's story illustrates her role as the protector of her devotees and the destroyer of all that is wicked and malevolent. Worshipping her during Navratri is an expression of faith in her power to overcome darkness and chaos, leading to the dawn of a brighter, more peaceful world.


देवी दुर्गा के सातवें रूप मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के त्योहार के दौरान की जाती है। उनके नाम "कालरात्रि" का अर्थ है "वह जो समय की रात है," जो उनके उग्र और विनाशकारी स्वभाव का प्रतीक है।

बहुत समय पहले रक्तबीज नाम के एक भयानक राक्षस ने संसार को आतंकित कर रखा था। उसके पास एक अनोखी शक्ति थी - जमीन पर गिरने वाले उसके खून की हर बूंद एक नए राक्षस को जन्म देती थी, जिससे वह लगभग अजेय हो जाता था। देवी-देवता निराशा में थे, उसे हराने में असमर्थ थे।

हताश होकर, उन्होंने दिव्य माँ दुर्गा से सहायता माँगी। उनकी प्रार्थनाओं के जवाब में माँ दुर्गा, माँ कालरात्रि में परिवर्तित हो गईं। वह जंगली बिखरे बाल, खोपड़ियों की माला और एक ज्वलंत तीसरी आंख के साथ एक भयंकर और अंधेरे देवी के रूप में उभरी।

क्रूर गधे पर सवार मां कालरात्रि के एक हाथ में शक्तिशाली तलवार और दूसरे हाथ में जलती हुई लोहे की हुक थी। वह अंधेरे और अराजकता से डरे बिना युद्ध में कूद पड़ी। जब रक्तबीज ने उसका सामना किया तो उसने उस पर बेरहमी से हमला कर दिया। उसने अपनी तलवार से उसके अंगों को काट डाला, और अपने लोहे के हुक से उसके खून को जमीन पर गिरने से रोका। उसने नए राक्षसों के जन्म को रोकते हुए, उसका खून पी लिया।

पूरी रात चले भीषण युद्ध में, माँ कालरात्रि ने रक्तबीज और उसकी सेना का विनाश कर दिया, और अंततः उस खतरे का अंत किया जिसने दुनिया को त्रस्त कर दिया था। उनकी जीत बुराई पर अच्छाई की जीत थी और वह साहस और ताकत का प्रतीक बनकर उभरीं।

माँ कालरात्रि की कहानी उनके भक्तों की रक्षक और दुष्ट और द्वेषपूर्ण सभी चीजों के विनाशक के रूप में उनकी भूमिका को दर्शाती है। नवरात्रि के दौरान उनकी पूजा करना अंधेरे और अराजकता पर काबू पाने की उनकी शक्ति में विश्वास की अभिव्यक्ति है, जिससे एक उज्जवल, अधिक शांतिपूर्ण दुनिया की शुरुआत होती है।

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